आत्मवृत्तान्त श्रृंखला-२
शीर्षक : पेरबा आ मातृभाषा
⇒ आइ-काइल्ह सामान्यो बेमारी अथवा घटनाक विवरण छविचित्र सहित फेसबुकपर परसबाक रेवाज जोर पकड़ने छै । एक तरहसँ नीको छियै ई, किएक त’ लोककेँ जल्दी जनतब भेट जाइछै घटना-परिघटनाद’ । स्वजन-परिजनद’ समाचार जल्दी भेटलापर सहयोग, भेँट आदिमे सेहो सहज होइछै । मुदा हमर धर्मपत्नी जखन गम्भीर बेमार भेलीह आ जेठ सोलह गते जहाजसँ काठमाण्डू गेलौँ त’ अवस्था एहेन छल जे ने जहाज चढ़ए कालक, नइँ त’ अस्पतालमे शोनित चढबए कालक आ ने केबिनक बेडपर असक्तावस्थामे गड़कल रहल कालक फोटो खिचि सकलौँ आ ने फेसबुकपर द सकलौँ । नइँ द’ सकलौँ, माने देबाक भावने नइँ आएल । किएक ने आएल भावना ? तकर उत्तर तकनाइ मोश्किल छै ।
खैर से जे भेल से भेल, मुदा वीर अस्पतालक प्रवासक दूटा घटना स्मृतिमे सदति रहत । केबिन नम्मर चाइरके बगलके मकानक दोगमे स्थायी आवास बनाक’ रहि रहल पेरबासभक मधुर स्वर मनकेँ खुबे आह्लादित करैत रहल । भिनसरबेसँ गुटुर-गुटुरके ध्वनि निन्न तोडै़त छल आ कानमे मधुर सङ्गीत जकाँ परसैत रहै छल ।
पहिल बेर त’ बाथरुम जाइत देरी खिड़कीक बाहरसँ ओसब पाँखि फड़फड़बैत भागि जाइ छल आ नुकाबए चाहै छल, मुदा एक मासक वाद जखन संयोगसँ ओएह केबिन भेटल त’ एइ बेर लागैए पेरबासब चिन्हि गेल छल आ आब भागए नइँ छल । बस मधुर ध्वनिसँ शीतलता प्रदान करै छल उपचारत हुनको आ उपचारमे सहयोगीक भूमिकमे संलग्न हमरो । कहैछै पेरबा शान्तिक प्रतीक छी, से सत्ते ।
दोसर गप, वीर अस्पतालक विगत तीन-चाइर माससँ भ’ रहल सप्ताह-द्विसप्ताहक प्रवासमे मातृभाषाक अद्भुत प्रभाव सेहो अनुभूत भेल । हमर धर्मपत्नी मैथिली छोड़ि आन भाषामे सहज सम्बाद नइँ क’ सकै छथि । अस्पतालक डाक्टर, नर्स आदिद्वारा नेपाली भाषामे पुछल जाइत प्रश्न उत्तर लगभग नहिएँ दै छली । हमरा भाषानुवाद करए पडै़ छल, मुदा हिनकर उपचारमे संलग्न मुख्य विशेषज्ञ चिकित्सक मैथिलीभाषी छथि आ हुनकासँ खुलिक’ ई अपन नीक-बेजाए कहै छली । एहिसँ उपचारमे अपेक्षातीत सहजता आ सफलता भेटैत गेल अछि । एक दू माससँ एकटा नर्स सेहो मैथिली भाषी आएल छथि । तकर वाद त’ आओरो सहजता भेल अछि । मातृभाषाक शक्तिक एहेन अनुभव एना प्रत्यक्ष नइँ भेल छल एइसँ पहिने ।
अस्पतालक संघर्षमय कालखण्डक ई दूटा अनुभव मनमे घुरिआइत रहए, पेरबा आ मातृभाषा मैथिलीक चमत्कार, से लिखा गेल । एहि बहन्ने लेखनक क्रमभङ्गता सेहो टुटल । अस्पताल प्रवासक क्रममे अनभूत आओरो तीत-मीठ अनुभव परसैत रहबाक मोन अछि, देखी की होइए ।
राजविराज , २०८० भादब २६ मङ्गलदिन
(साभार देवेन्द्र मिश्रक फेशबुक वालस)
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