→देवेन्द्र मिश्र←
⇒ आठ-बाइ-आठक भाड़ाबला तीनटा कोठलीमे एकटा कोठली बकड़ी, हाँसके लेल रखने छल विदेशर । हाँसक अण्डा बेचिक’ नीके आम्दनी होइ छल, मुदा बकड़ी नइँ धारि रहल छल ओकरा ।
पहिल बिआनमे भेल दूनू छागर एकटा अनठिआ कुकुरक शिकार भ’ गेल छल । लोक कहए : हओ बिदेशर, बेचि दहक बकडी, नइँ धारए छ ओ तोरा । मुदा जिब्बट बिदेशर नइँ मानने छल ककरो बात । दोसर बिआनमे तीनटा बच्चा भेल : दूटा पाठी आ एकटा छागर ।
जनमिते कबुला कु देने छल ओ कहाँदन’ “भैरव” केँ जे एइ बेर जँ कुकुरसँ बचि जाएत त’ एइ छागरकेँ चढ़ा देत ओकरा । से “भैरव” रक्षा क’ देलक सबटाके आ आइ दूटा पाठी आ भविष्यमे होइबला आओरो छागर पाठीक जान बचेबाक लेल पछबरिया बाड़ीमे काटि देल गेल, बलिदानी द’ देल गेल ओइ छागरकेँ ।
कर- कुटुम्ब,अड़ोसी-पड़ोसी आनन्दित अछि आइ माउसक बुट्टी खा क’ । बकड़ी खन दूनू पाठी दिस, खन कटलाहा छागर दिस ताकि रहल छल आ मुड़ी हिलाक’ नइँ जानि की कहि रहल छल र ? (१५१ शब्द)
२०८० अगहन ३० शनिदिन
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